आत्मा
सहज योग में जब आप आत्मा बन जाते हैं तब सभी कुछ बदल जाता हैं। आप एक ऐसे मनुष्य बन जाते हैं जो जानता हैं की प्रसन्नता क्या होती है, प्रसन्नता का आनंद कैसे लिया जा सकता है, जीवन का आनंद कैसे लिया जाए -और जो दूसरों को खुशी देता है-सदैव यह सोचता रहता है कि दूसरों को कैसे आनंदित किया जाए । आप एक बुद्धिमान, सुंदर और आनंदमयी व्यक्ति बन जाते हैं। आप एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं जिसके विषय में आपको पता नहीं होता। आप स्वयं को परख लीजिए कि जो में कह रही हूँ वह सही है या नहीं है।
एक सहज योगी कहीं भी रह सकता है, कहीं भी सो सकता है। उसकी आत्मा उसे प्रसन्नता प्रदान करती है। सारे विचार जो मनुष्यों में हैं उन्हें समस्याओं में फंसाते जाते हैं कि आप किसी दूसरे धर्म के अनुयायी हैं तो आप 'खराब' हैं। अगर आपको ईसाईयों के विषय में पूछना है तो जीवों से पूछ लीजिए। जीव के विषय में आपको मुसलमान बतायेंगे और मुसलमानों के विषय में आपको हिन्दू। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि वो कैसे लोगों के विषय में बोलते हैं। जैसे अन्य सारे 'ख़राब' हैं और वो ही सबसे अच्छे हैं।
अतः यह विचार पूर्ण रूप से बदल जाते हैं। सहज में आप भूल जाते हैं कि कौन क्या हैं, किसका धर्म क्या है, कौन किस परिवार से आया है। सारे एक हो जाते हैं। वे सारे सहजयोगियों कि सामूहिकता का आनंद उठाते हैं- यहीं मक्का है, यहीं कुम्भ मेला है। यह सामूहिक आनंद आपको इसलिए मिलता है कि आप उन सभी बन्धनों को काट जाते हैं जो सत्य को देखने से आपको रोकता है। सत्य यह है कि आप आत्मा बन गए हैं, और जब आप आत्मा बन जाते हैं तब आप गुणातीत , कालातीत और धर्मातीत भी बन जाते हैं।
आप सागर की एक बूंद बन जाते हैं। अगर यह बूंद सागर के बाहर रहती है तब यह सदैव सूर्य से डरी रहती है क्योंकि वह इसे सुखा देगा। परन्तु जब वह सागर के साथ होती है तब वह आनंदित होती है क्योंकि वह अकेली नहीं है -बल्कि आनंद के सागर की लहरों के साथ हिलोरें ले रही होती है।
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी जी 21 मार्च १९९८ नयी दिल्ली
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