शिव तत्व बुद्धि से परे है
मानव का अन्तिम लक्ष्य यही है कि वो शिव तत्व को प्राप्त करे। शिव तत्व बुद्धि से परे है। उसको बुद्धि से नहीं जाना जा सकता। जब तक आप आत्म-साक्षात्कारी नहीं होते, जब तक आपने अपने आत्मा को पहचाना नहीं, अपने को जाना नहीं, आप शिव तत्व को जान नहीं सकते। शिवजी के नाम पर बहुत ज्यादा आडम्बर, अन्धता और अंध-श्रद्धा फैली हुई है। किंतु जो मनुष्य आत्म साक्षात्कारी नहीं वो शिवजी को समझ ही नहीं सकता क्योंकि इनकी प्रकृति को समझने के लिए सबसे पहले मनुष्य को उस स्थिति में पहुंचना चाहिए जहाँ पर सारे ही महान तत्व अपने आप विराजें। उनके लिए कहा जाता है कि वे भोले शंकर हैं। आजकल बुद्धिवादी बहुत से निकल आए है संसार में, और अपनी बुद्धि की उड़ान से जो चाहे वो उट पटांग लिखा करते हैं और फ़िर कहते हैं ये शिवजी तो भोले हैं। इनका भोला होना बुद्धिवादियों के हिसाब से तो एकदम ही बेकार चीज़ है। आजकल आदमी जितना चालाक और चुस्त होगा वो यशस्वी हो जाता है। तो इनका भोलापन कैसे समझा जाए? आजकल के लोग सोचते हैं जो आदमी भोला होता है वो बिल्कुल बेवकूफ है। लेकिन शिवजी का भोलापन ऐसा है कि जहां वो सब कुछ है। समझ लीजिये कि जरुरत से ज्यादा कोई श्रीमंत रईस आदमी हो जाए और उसको विरक्ति आ जाए और उसका लोग धन उठा के ले जाए तो लोग कहेंगे अजीब भोला आदमी है जिसका लोग धन चुरा रहे हैं उसपे कोई असर ही नहीं। लेकिन जब उसको विरक्ति आ गई और उस धन का उसके लिए महात्म्य ही नहीं रहा वो अपने भोलेपन में बैठा है और भोलेपन का मज़ा ले रहा है। जब चीज़ अपने आप हो ही रही है, सब कुछ कार्यान्वित ही है तो शिवजी का उसमे कार्य भाग क्या रहता है? वे भोलेपन से सब चीज़ देखते रहते हैं। वो साक्षी स्वरूप हो गए और शक्ति का कार्य देखते हैं। शक्ति ने सारी सृष्ठी रचाई और शक्ति ने ही सारी देवी-देवता बनाये और उनके सारे कार्य बना दिए। उनकी नियुक्ति हो गई और अब शिवजी को क्या काम हैं? शिवजी को बस देखना हैं। और फ़िर देखने में ही सब कुछ आ जाता हैं। उनके भोलेपन का असर ये है कि जिसपे भी दृष्टी पड़ जाए वो ही तर जाता है। जिसके तरफ़ उनका चित्त चला जाए वो ही तर जाए। कुछ उनको करने कि जरुरत ही नही हैं। ये सब खेल है। जैसे बच्चों के लिए खेल होता है परमात्मा के लिए वो सारा एक खेल है।
- परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
(मुंबई, १९/०२/१९९३)
- परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
(मुंबई, १९/०२/१९९३)
December 14, 2008 at 2:26 AM
मानव की बुद्धि सिर्फ उस विषय के विषय मे सोच सकती है जो उसकी इन्द्रिया अनुभुत कर सकती है। अस्तित्व व्यापक है और इन्द्रिय सिमीत। इन्द्रिया तो अपना वह विषय भी नही अनुभव कर सकती है जिसमे भेदा-भेद न हो, जो सतत हो, जो निरंतर हो। अब सवाल यह है की उस शिव तत्व को कैसे अनुभव करें ??? कोई सदगुरु है आज के विश्व मे जो अस्तित्व को पुर्णता मे जानता हो? अगर आपकी जानकारी में कोई हो तो मुझे अवश्य अवगत कराएगें।
January 13, 2009 at 9:59 AM
we want to work with you . hamain apna atama saschatkar karna hai. plz say to me about it's informattion .
jai mata ge