प्रेम के सिवाय शिव कुछ भी नहीं
प्रेम के सिवाय शिव कुछ भी नहीं। प्रेम सुधारता है, पोषण करता है और आपके हित की कामना कार्य है। शिव आपके हितों का ध्यान रखते हैं। प्रेम से जब आप दूसरों को हितों का ध्यान रख रहे होते हैं तो जीवन का सारा ढांचा ही बदल जाता है। इतने लोगों से एकाकारिता हो जाने के कारण आप वास्तव में इसका आनंद उठाते हैं। आप एक सर्व्व्यापाक व्यक्ति बन जाते हैं और यही दृष्टीकोण प्राप्त करना है।
जब मुझे पता लगता है की निम्न जाती या रंग के कारण किसीसे दुर्व्यवहार किया गया मेरी समझ में नही आता कि यह कैसे सम्भव है क्योंकि हम सब एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। एक ही माँ से जन्में सब भाई - बहन हैं। परन्तु यह अनुभूति तभी सम्भव है जब आप अपने सम्बन्धों को इस महान, अथाह प्रेम - सागर में विसर्जित कर देते हैं। स्वयं देखिये कि क्या आप वास्तव में सबसे प्रेम करते हैं? मैं अपने लिए कभी कुछ नही खरीदती। दूसरों का आनंद ही सभी कुछ है। यही सर्वाधिक - आनंददायी है। अपने बारे में सोचें। "मैं यहाँ क्यों हूँ? सभी का आनंद लेने के लिए। ये सब साक्षात्कारी मनुष्य हैं। ये इतने सुन्दर कमल हैं। मैं भी कीचड़ में नहीं धसूंगा। मैं कमल हूँ।" ह्रदय कमल को खोलने का यही तरिका है। ऐसे व्यक्ति कि सुगन्ध भी अति सुन्दर होती है। हम सब में एकाकारिता हो जाने के बाद कहीं भी यदि कोई कार्य होता है तो हम उसका आनंद उठाते हैं। शिव रूपी प्रेम - सागर में अपनी छोटी - छोटी लिप्साओं को विसर्जित करना आवश्यक है।
- परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी
(इटली, १७/०२/१९९१)
जब मुझे पता लगता है की निम्न जाती या रंग के कारण किसीसे दुर्व्यवहार किया गया मेरी समझ में नही आता कि यह कैसे सम्भव है क्योंकि हम सब एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। एक ही माँ से जन्में सब भाई - बहन हैं। परन्तु यह अनुभूति तभी सम्भव है जब आप अपने सम्बन्धों को इस महान, अथाह प्रेम - सागर में विसर्जित कर देते हैं। स्वयं देखिये कि क्या आप वास्तव में सबसे प्रेम करते हैं? मैं अपने लिए कभी कुछ नही खरीदती। दूसरों का आनंद ही सभी कुछ है। यही सर्वाधिक - आनंददायी है। अपने बारे में सोचें। "मैं यहाँ क्यों हूँ? सभी का आनंद लेने के लिए। ये सब साक्षात्कारी मनुष्य हैं। ये इतने सुन्दर कमल हैं। मैं भी कीचड़ में नहीं धसूंगा। मैं कमल हूँ।" ह्रदय कमल को खोलने का यही तरिका है। ऐसे व्यक्ति कि सुगन्ध भी अति सुन्दर होती है। हम सब में एकाकारिता हो जाने के बाद कहीं भी यदि कोई कार्य होता है तो हम उसका आनंद उठाते हैं। शिव रूपी प्रेम - सागर में अपनी छोटी - छोटी लिप्साओं को विसर्जित करना आवश्यक है।
- परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी
(इटली, १७/०२/१९९१)
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