अबोधिता का आनंद उठाना चाहिए  

निष्कपटता शिव का एक गुण है। बाल सम वे अबोध हैं। वे साकार अबोधिता हैं। हमें अपनी विषयों, सक्रियों को अबोधिता कि सागर में डुबो देना है। अबोधिता को समझ कर, महत्त्व देकर इसका आनंद उठाना चाहिए। पशु तथा बच्चे अबोध होते हैं। इन सब बातों पर चित्त दें। सड़क पर चलते हुए आपको क्या देखना चाहिए? आप अपनी दृष्टी पृथ्वी से केवल तीन फ़ुट ऊँची रखें। इस ऊंचाई पर आपको फूल, हरी घास और बच्चे दिखाई पड़ेंगे। तीन फ़ुट से ऊँचे लोगों को देखने की आवश्यकता ही नहीं। जो व्यक्ति अबोध नहीं उसकी टांगो तक आप चाहे देख लें लेकिन उसकी आंखों में न देखें। इस इच्छा को अबोधिता में लीन कर दें। मूलाधार अबोधिता हैं तथा पवित्र धर्म परायणता। यह श्री गणेश का गुण हैं। मनुष्य के भांति इस विश्व में रहते हुए, चाहे आप बालक न भी हो तो भी अभी तक आप अबोध हैं।

जैसे एक बार श्री कृष्ण की सोलह-हज़ार और पाँच पत्नियों ने एक प्रसिद्द महात्मा को मिलना चाहा। रास्ते में नदी में बाढ़ के कारण वे उसे पार नहीं कर पाई। वापिस आकर उन्होंने श्री कृष्ण से नदी पार करने की विधि पूछी। तो श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि नदी से जाकर कहो कि "यदि श्री कृष्ण योगेश्वर हैं और ब्रम्हचारी भी, तो पानी नीचे आ जाए।" नदी से इस प्रकार कहने पर नदी का पानी घट गया। अतः संसार में पति - पत्नी आदि की तरह रहते हुए भी आप अबोध हो सकते हैं। यही पवित्रता कि निशानी है।



- परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी
(इटली, १७/०२/१९९१)

What next?

You can also bookmark this post using your favorite bookmarking service:

Related Posts by Categories



श्री माताजी निर्मला देवी