श्रीमाताजी से साक्षात्कार (1)
स्थान- भारतीय विद्या भवन मुंबई
दिनाक - २२/०३ १९७७
प्रश्न १- श्रीमाताजी चैतन्य लहरियाँ क्या हैं ?
उत्तर - बहुत ही अच्छा प्रश्न हैं ।
पहला प्रश्न ये है कि चैतन्य लहरियां क्या हैं? कल मैंने आपसे बताया था कि हमारे हृदय के अंदर एक ज्योति है जो हमेशा जलती रहती है, ये आत्मा है जो हमारे हृदय में परमात्मा का प्रतिबिम्ब है । संक्षिप्त में मैं आपको इसके विषय में बताऊंगी । कुण्डलिनी जब उठती है तो क्या होता है? ये ब्रहम रंध्र को खोलती है । यहाँ पर सदाशिव की पीठ है । यहाँ सहस्त्रार पर यह पीठ है । परन्तु सदाशिव हृदय में हैं आत्मा के रूप में प्रतिबिम्बित । पीठ का सृजन इसलिए किया जाता है क्योंकि ये सर्वव्यापी सूक्ष्म-शक्ति को ग्रहण करती है । स्थूल के अंदर विद्यमान सर्वव्यापी शक्ति , उदाहरण के रूप में ये माईक मेरी आवाज़ को ग्रहण करता है । आवाज़ सूक्ष्म शक्ति है जो इस माईक के माध्यम से एकत्र होती है । और यदि आपके पास रेडियो हो तो वह भी इस आवाज़ को पकड़ेगा ।
इसी प्रकार से मस्तिष्क में पीठ है , और सदाशिव की पीठ यहाँ ऊपर (सहस्त्रार) है इसलिए खुलती है ताकि सूक्ष्म और स्थूल सूक्ष्मतंत्रिका के माध्यम से हमारे हृदय में प्रवेश कर सके । जैसे गैस का प्रकाश जिसमें टिमतिमाहट होती है, जब गैस खुलती है तो प्रकाश हो जाता है । चैतन्य लहरियाँ हमारे अंदर से गुजरने वाला वही प्रकाश है । ये चैतन्य लहरियाँ हमारे अंदर से प्रवाहित होने लगती हैं । अब मैं क्या करती हूँ ? पूछेंगे, "श्रीमाताजी आप क्या करती हैं?" मैं कुछ नहीं करती केवल आपको वह शक्ति देने का प्रयास करती हूँ , जो आप कह सकते हैं कि गैस शक्ति है । यह गैस आप है क्योंकि कुंडलिनी जानती है कि मैं आपके सम्मुख हूँ इसलिए वह उठती है , प्रकट होती है और प्रवाहित होने लगती है। परन्तु जब तक आप सूक्ष्म नहीं बनते आप इसे महसूस नहीं कर सकते आप कह सकते है कि मैं सीमित में असीम हूँ या आप कह सकते हैं कि मैं असीमित में सीमित हूँ । मैं दोनों हूँ । इसलिए सारी सूक्ष्म ऊर्जा में जो ऊर्जा प्रवाहित होती है वह मेरे अंदर से गुजरती है मैं विराट हूँ । विराट के अंदर से ही सभी कुछ प्रवाहित होता है । ये सर्व व्यापी शक्ति में जाता है । यह सर्व व्यापी है । सर्वत्र , सभी व्यक्तियों में ये प्रवाहित हो रहा है । छोटी सी कोशिका में भी, कार्बन के अणु में तथा अन्य सभी अणुओं में ये विद्यमान है। ये सूक्ष्म ऊर्जा है जो मेरे माध्यम से प्रवाहित हो रही है। जब आप सूक्ष्म हो जाते हैं तो रेडियो कि तरह से बनकर इसे ग्रहण करते हैं। ठीक क्या है और गलत क्या है , इस बात को आप कैसे जानेगे? आप सूक्ष्म से पूछें ? सूक्ष्म आपको उत्तर देता है और आपको अपने हाथों पर उत्तर प्राप्त होता है । ये इस तरह से होता है । तो ये चैतन्य लहरियां है जिन्हें आप सर्व व्यापी शक्ति से प्राप्त करते हैं , जिसे आप मुझसे , सर्वव्यापी से, प्राप्त करते हैं । सभी दिशाओं से यह एक जैसी है, ये चैतन्य लहरियां हैं .........................।
दिनाक - २२/०३ १९७७
प्रश्न १- श्रीमाताजी चैतन्य लहरियाँ क्या हैं ?
उत्तर - बहुत ही अच्छा प्रश्न हैं ।
पहला प्रश्न ये है कि चैतन्य लहरियां क्या हैं? कल मैंने आपसे बताया था कि हमारे हृदय के अंदर एक ज्योति है जो हमेशा जलती रहती है, ये आत्मा है जो हमारे हृदय में परमात्मा का प्रतिबिम्ब है । संक्षिप्त में मैं आपको इसके विषय में बताऊंगी । कुण्डलिनी जब उठती है तो क्या होता है? ये ब्रहम रंध्र को खोलती है । यहाँ पर सदाशिव की पीठ है । यहाँ सहस्त्रार पर यह पीठ है । परन्तु सदाशिव हृदय में हैं आत्मा के रूप में प्रतिबिम्बित । पीठ का सृजन इसलिए किया जाता है क्योंकि ये सर्वव्यापी सूक्ष्म-शक्ति को ग्रहण करती है । स्थूल के अंदर विद्यमान सर्वव्यापी शक्ति , उदाहरण के रूप में ये माईक मेरी आवाज़ को ग्रहण करता है । आवाज़ सूक्ष्म शक्ति है जो इस माईक के माध्यम से एकत्र होती है । और यदि आपके पास रेडियो हो तो वह भी इस आवाज़ को पकड़ेगा ।
इसी प्रकार से मस्तिष्क में पीठ है , और सदाशिव की पीठ यहाँ ऊपर (सहस्त्रार) है इसलिए खुलती है ताकि सूक्ष्म और स्थूल सूक्ष्मतंत्रिका के माध्यम से हमारे हृदय में प्रवेश कर सके । जैसे गैस का प्रकाश जिसमें टिमतिमाहट होती है, जब गैस खुलती है तो प्रकाश हो जाता है । चैतन्य लहरियाँ हमारे अंदर से गुजरने वाला वही प्रकाश है । ये चैतन्य लहरियाँ हमारे अंदर से प्रवाहित होने लगती हैं । अब मैं क्या करती हूँ ? पूछेंगे, "श्रीमाताजी आप क्या करती हैं?" मैं कुछ नहीं करती केवल आपको वह शक्ति देने का प्रयास करती हूँ , जो आप कह सकते हैं कि गैस शक्ति है । यह गैस आप है क्योंकि कुंडलिनी जानती है कि मैं आपके सम्मुख हूँ इसलिए वह उठती है , प्रकट होती है और प्रवाहित होने लगती है। परन्तु जब तक आप सूक्ष्म नहीं बनते आप इसे महसूस नहीं कर सकते आप कह सकते है कि मैं सीमित में असीम हूँ या आप कह सकते हैं कि मैं असीमित में सीमित हूँ । मैं दोनों हूँ । इसलिए सारी सूक्ष्म ऊर्जा में जो ऊर्जा प्रवाहित होती है वह मेरे अंदर से गुजरती है मैं विराट हूँ । विराट के अंदर से ही सभी कुछ प्रवाहित होता है । ये सर्व व्यापी शक्ति में जाता है । यह सर्व व्यापी है । सर्वत्र , सभी व्यक्तियों में ये प्रवाहित हो रहा है । छोटी सी कोशिका में भी, कार्बन के अणु में तथा अन्य सभी अणुओं में ये विद्यमान है। ये सूक्ष्म ऊर्जा है जो मेरे माध्यम से प्रवाहित हो रही है। जब आप सूक्ष्म हो जाते हैं तो रेडियो कि तरह से बनकर इसे ग्रहण करते हैं। ठीक क्या है और गलत क्या है , इस बात को आप कैसे जानेगे? आप सूक्ष्म से पूछें ? सूक्ष्म आपको उत्तर देता है और आपको अपने हाथों पर उत्तर प्राप्त होता है । ये इस तरह से होता है । तो ये चैतन्य लहरियां है जिन्हें आप सर्व व्यापी शक्ति से प्राप्त करते हैं , जिसे आप मुझसे , सर्वव्यापी से, प्राप्त करते हैं । सभी दिशाओं से यह एक जैसी है, ये चैतन्य लहरियां हैं .........................।
February 11, 2019 at 1:10 AM
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February 12, 2019 at 6:53 AM
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"Jai Shree Mataji"
August 15, 2019 at 10:43 PM
Jai shree mataji
March 3, 2022 at 6:05 PM
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