मूलाधार चक्र  


स्वर - सा
ग्रह - मंगल
देवता - श्री गणेशा
तत्त्व - भूमि तत्त्व, कार्बन
बीजाक्षरें - वं, शं, षं, सं
राग - बिलावल, शामकल्याण
कार्य - विसर्जन, संतान उत्पत्ति
शारीरिक भाग - प्रोस्टेट ग्लँन्ड्स

शरीर में स्थान - रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में

चक्र के बिघाड से आने वाले दोष - लालची स्वभाव, अधार्मिक स्वभाव

गुण - पवित्रता, निरागसता, अबोधिता, सुज्ञता, आत्मविश्वास, दिशाओं का ज्ञान

ख़राब होने के कारण - चालाखी, हेराफेरी, मुक्त एवं अनैसर्गिक यौन सम्बन्ध, तांत्रिक प्रयोग, अश्लील वांग्मय वाचन

परिणाम - यौन सम्बंधित रोग, ऐड्स, शारीरिक और मानसिक कमजोरी, संतान प्राप्ति में समस्याएं

विवरण - मूलाधार चक्र के चार पंखुडिया हैं और उनकी स्थापना त्रिकोनाकृति अस्थि के निचे के हिस्से में हैं शारीरिक स्तर पर पेल्विक प्लेक्सास के द्वारा इस का कार्य चलता हैं मूलाधार चक्र कुण्डलिनी शक्ति का रक्षण का कार्य करते हैं.



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श्री माताजी निर्मला देवी