स्वाधिष्ठान चक्र  



राग - तोडी, यमन
बीजक्षारें - बं, , मं, यं, रं, लं
देवता - श्री ब्रम्हदेव सरस्वती
गुण - निर्मल विद्या एवं निर्मल इच्छा चित्त
शरीर में स्थान - मूलाधार के ऊपर और नाभि के निचे, किडनी, यकृत

स्वभाव के वजह से चक्र में आने वाले दोष - बहोत अतिरेकी स्वभाव

कार्य - गर्भपेशी, किडनी, लीवर इन सबका नियंत्रण करना, मस्तिष्क को सोचने के शक्ति देना

खराबी आने की वजह - बहोत ज्यादा सोचना, अति-नियोजन, तम्बाखू अवं अति दवाई का सेवन करना, भविष्यके बारे में बहोत ज्यादा सोचना, अहंकारी स्वभाव, अगुरु (ढोंगी गुरु) एवं तांत्रिक लोगो के पास जाना।

परिणाम - मधुमेह, गॅसेस, अशुद्ध चित्त, किडनी और लीवर से सम्बंधित रोग आदि।

विवरण - स्वाधिष्ठान चक्र के छह पंखुडिया हैं और शारीरिक स्तर पर वह आर्टिक प्लेक्सास का कार्य करते हैं। निर्मिती के लिए, सोचने के लिए, भविष्य के बारे में सोचने के लिए यह केन्द्र मस्तिष्क को शक्ति पोहोचता हैं।

चित्त का स्थान केवल मस्तिष्क में नही बल्कि लीवर में होता हैं इसी लिए मद्यपान करने से मानवी चित्त घुमातारहता हैं और लीवर में बिघाड हो जाता हैं। इस चक्र के बाएँ तरफ़ शुद्ध विद्या का स्थान हैं। इस का नियंत्रण शुद्धज्ञान देने वाले देवता करते हैं जिसके वजह से हम में सौंदर्य दृष्टी विकसित होती हैं।


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श्री माताजी निर्मला देवी