नाभि चक्र
ग्रह - गुरु
विराजमान देवता - मध्य - श्री लक्ष्मी विष्णु
दायें - श्री राजलक्ष्मी
बाएं - श्री गृहलक्ष्मी
बाएं - श्री गृहलक्ष्मी
तत्त्व - अग्नि तत्व
बीजाक्षरें - तं, थं, दं, धं, नं, पं, फं, दं, ध, णं
राग - अभोगी भटियार
कार्य - पेट, आंत, लीवर, पाचनशक्ति संभालना
शरीर में स्थान - नाभि
चक्र के बिघाड से आने वाले दोष - असमाधानी स्वभाव, अतृप्त स्वभाव, कंजूस, पति अथवा पत्नी पे रोब जमाना।
गुण - पारिवारिक सुख संपन्नता विकास, सामाजिक विकास, नैतिकता, अच्छा साफ़ चरित्र।
ख़राब होने के कारण - पैसे हेराफेरी, कंजूसी, खाने में चित्त होना, घर-गृहस्ती एवं धन की ज्यादा चिंता करना, अन्टिबिओटिक्स का बहोत ज्यादा सेवन करना, भगवन के नाम पे बहुत सरे उपवास करना।
विवरण - नाभि चक्र के दस पंखुडियां हैं। शारीरिक स्तर पर यह चक्र सोलर प्लेक्सास का कार्य करता हैं। बढ़ते समृद्धि के साथ लोग और भी पैसे के पीछे भागते हैं। उस वजह से इस चक्र में तनाव एवं कठिनाइयाँ आते हैं। भौतिक सुख के पीछे भागना, मित आहार, आर्थिक अव्यवस्था आदि इस चक्र के बिघाड के लिए कार्णीभुत होते हैं।
October 15, 2008 at 7:29 PM
सुंदर
December 4, 2010 at 5:36 AM
bahut sundar jai shree mata ji