भवसागर चक्र  




राग : मालकंस 
परिणाम : कैंसर, असंतुलन 
विराजमान देवता : श्री आदिगुरू दत्तात्रेय 
गुण : स्वतः के गुरु बनके संतुलित जीवन पाना  
खराबी के कारण : धार्मिक कट्टरता, असत्य वर्तन, मद्यपान

नाभि चक्र के चहुँ ओर भवसागर हैं. जीवन के सभी पक्ष जैसे व्यक्तित्व, ग्रहों एवं गुरुत्वाकर्षण शक्ति का हमारी व्यवहार प्रणाली एवं शारीरिक भरण-पोषण पर प्रभाव आदि के लिए यह जिम्मेदार हैं. यह बाह्य प्रभावों का क्षेत्र हैं. जब हम अंधकारमय अवस्था में होते हैं (आत्मसाक्षात्कार से पूर्व) तब यह उस शुन्यता का प्रतिक हैं जो हमारी चेतना के स्तर को सत्य से पृथक करती हैं. इस रिक्ति को जब कुण्डलिनी भर देती हैं तब हमारा चित्त भ्रम-सागर से निकलकर चेतना की वास्तविकता में प्रवेश करता हैं.

ये दस आदिगुरुओं का चक्र हैं जो मानवता को वास्तविकता एवं सत्य के साम्राज्य में ले जाने के लिए अवतरित हुए. कुण्डलिनी जब इस रिक्ति को भर देती हैं तोह व्यक्ति स्वयं का गुरु बन जाता है और उसके अंतर्गत प्राकृतिक मर्यादाएं जागृत हो जाती हैं. ऐसा व्यक्ति अत्यंत इमानदार एवं योग्य अगुआ बन जाता है और उसकी सभी अभिव्यक्तियों में गंभीरता होती हैं.



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श्री माताजी निर्मला देवी