अनाहत चक्र
स्वर : म
ग्रह : शुक्र
वार : शुक्रवार
तत्त्व : वायु तत्त्व
राग : भैरवी और दुर्गा
गुण : प्रेम, करुना, सुरक्षा, हितेषिता
नियंत्रित अंग : ह्रदय, फेफडे, रक्तदबाव
बिगाड़ से होने वाले दुष्परिणाम : हृदयरोग, श्वासोश्वास सम्बन्धी रोग, अस्थमा
विराजमान देवता :
मध्य अनाहत : श्री जगदम्बा माँ
दायाँ अनाहत : श्री राम-सीता
बाया अनाहत : श्री शंकर-पार्वती
बारह पंखुडियों वाला ये चक्र अनाहत कहलाता है और मेरुरज्जू में उरोस्थि (sternum bone) के पीछे इसका स्थान हैं। ये चक्र ह्रदय चक्र के अनुरूप हैं जो बारह वर्ष की आयु तक रोग प्रतिकारक (Antibodies) पैदा करता हैं। तत्पश्चात ये रोग प्रतिकारक हमारे शरीर तंत्र में फ़ैल जाते हैं और शरीर या मस्तिष्क पर होने वाले किसी भी आक्रमण का मुकाबला करते हैं। व्यक्ति पर भावनात्मक या शारीरिक आक्रमण स्थिति में उरोस्थि के माध्यम से रोग प्रतिकारको को सुचना दी जाती हैं क्योंकि उरोस्थि ही सुचना प्रसारण का दूरस्थ नियंत्रण केन्द्र (Remote Control) हैं। ह्रदय तथा फेफडों की कार्य प्रणाली का नियमन करते हुए ये केन्द्र श्वास प्रक्रिया को नियंत्रण करता हैं।
कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती है तो व्यक्ति अत्यन्त आत्म-विश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यन्त हितेषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता हैं।
0 प्रतिक्रिया: to “ अनाहत चक्र ”
Post a Comment