सहस्रार चक्र  



स्वर : नी
ग्रह : चंद्र
वार : सोमवार
तत्त्व : सर्व तत्व
रत्न : मोती
राग : दरबारी और भैरवी
गुण : निर्विचारिता, निरानंद, परमशांती, आत्मसाक्षात्कार, सामूहिक चेतना और आनंद
नियंत्रित अंग : तालू क्षेत्र
विराजमान देवता : श्री माताजी निर्मला देवी

मस्तिष्क या तालू क्षेत्र स्थित हजार पंखुडियों वाला ये चक्र सहस्रार चक्र कहलाता हैं। वास्तव में इसमे इक हज़ार नाडियाँ हैं। आप यदि मस्तिष्क को आड़ा काटें तो सुंदर पंखुडियों की शक्ल में सहस्रदल कमल बनाती हुई इन नाड़ियों को आप देख सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार से पूर्व बंद-कमल की तरह ये चक्र मस्तिष्क के तालू क्षेत्र को आच्छादित करता हैं।

जागृत होकर कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती हैं तो सारी नाडियाँ भी जागृत हो जाती हैं और सभी नाडी केन्द्रों को ज्योतिर्मय करती हैं और हम कहते हैं के व्यक्ति आत्म-साक्षात्कारी (ज्योतिर्मय) हैं। तालू क्षेत्र का अधिक भेदन करके कुण्डलिनी ब्रम्हांड में एक मार्ग खोलती हैं और इस हम सर पे शीतल चैतन्य-लहरियों के रूप में अनुभव करते हैं। यह योग का वस्ताविकरण हैं, परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से एकाकारिता (आत्म-साक्षात्कार)।

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श्री माताजी निर्मला देवी