आज्ञा चक्र  

स्वर : ध
ग्रह : सूर्य
वार : रविवार
तत्त्व : प्रकाश तत्त्व
राग : बागेश्री और भूप
गुण : क्षमाशिलता, करुना, अहिंसा
नियंत्रित अंग : दृष्टी, द्रुकअन्तःपुर (Optic Thalamus), अल्पअन्तःपुर (Hypto Thalamus)
विराजमान देवता :
मध्य अनाहत : श्री जिझस मेरीमाता
दायाँ अनाहत : श्री महावीर
बाया अनाहत : श्री बुद्ध

दो पंखुडियों के इस चक्र का नाम आज्ञा चक्र हैं. मस्तिष्क में (optic nerves) जहाँ एक दुसरे को पार करती हैं वह आज्ञा चक्र का स्थान हैं. ये चक्र पियूष तथा शंकुरूप (Pituitory and Pineal) ग्रंथियों की देखभाल करता हैं. ये ग्रंथियां शरीर में अहं तथा प्रतिअहं नाम की संस्थाओ की अभिव्यक्ति करती हैं.

क्योंकि ये चक्र आँखों की भी देखभाल करता हैं इसलिए सिनेमा, कंप्यूटर, टेलिविज़न, पुस्तकों आदि पर हर समय दृष्टी गडाये रखना इस चक्र को दुर्बल करता हैं. बहुत अधिक मानसिक व्यायाम एवं बौद्धिक कलाबाजियां इस चक्र को अवरोधित करती हैं और व्यक्ति के अन्दर अहं-भाव विकसित हो जाता हैं.

कुण्डलिनी जब इस चक्र का भेदन करती हैं तो व्यक्ति एकदम से निर्विचार और क्षमाशील बन जाता हैं. निर्विचारिता एवं क्षमाशीलता इस चक्र का सार है, अर्थात ये चक्र हमें क्षमा की शक्ति प्रदान करता हैं.

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श्री माताजी निर्मला देवी