विनम्र बने और शाश्वत सत्य को पा लें
यह प्रेम आपके अंदर से फूट पड़ रहा है। इस प्यार को प्रसारित करने तथा इसे देने के विवेक का आनंद भी लें। देने में महानतम आनंद और प्रसन्नता है। लेने में कोई आनंद नही है।
कृपया विनम्र बनने का प्रयत्न करें। सर्वप्रथम अपने अंदर इस शाश्वत सत्य को पा लें। अपना शरीरयन्त्र परमात्मा को समझने का दिव्य उपकरण बनने दें। इधर-उधर से पढ़ी हुई चीजों के बहकावे में न आयें। संकीर्ण विचारों तथा अन्य लोगों का मजाक बनाने वाले मूर्खतापूर्ण अहम् से संचालित न हों। हे मानव! सूझ-बुझ प्राप्ति के इस महान अवसर के लिए स्वयं को जगाओ। ये प्रगल्भ शक्ति आपसे प्रसारित होने का प्रयत्न कर रही हैं। हमें इस विश्व को परिवर्तित करके सुंदर बनाना है क्योंकि सृजनकर्ता अपनी सृष्टि को कभी नष्ट नहीं होने देगा। परन्तु आप यदि सत्य को स्वीकार नहीं कर लेते तो आप स्वयं नष्ट हो जायेंगे। अतः माँ के रूप में एक बार पुनः मैं आपसे अनुरोध करती हूँ कि दिव्य सत्य को, परमेश्वरी प्रेम को, स्वीकार करें और एक हो जाएँ।
परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी
(मुंबई, २१/०३/१९७७)
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