प्रेम का ज्ञान ही परा ज्ञान हैं
प्रेम ही ज्ञान है और ज्ञान ही प्रेम है। इससे आगे कुछ भी नहीं। आपके पास अगर ज्ञान हैं तो इसे प्रेम कि परीक्षा पास करनी होगी। आप यदि किसी को जानते हैं तो इस का आप पर कोई असर नहीं होता क्योंकि आप उसे बाह्य रूप से जानते हैं। परन्तु यदि आप किसी को प्रेम करते हैं केवल तभी उसे अच्छी तरह से समझते हैं। बहुत अच्छी तरह से आप उसे जानते हैं कि वह कैसा है। यही वह ज्ञान है जिसे हम परा ज्ञान कहते हैं। हमें यही ज्ञान खोजना है।
- परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
(मुंबई, २१/०३/१९७७)
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