संतुलित व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार के लिए बहुत उपयुक्त होता है  


"अन्तःदर्शन करते हुए यदि मनुष्य हार्दिक विनम्रता से कहे : 'अभी तक मुझे सत्य का ज्ञान नहीं है, परन्तु यह ज्ञान मुझे प्राप्त करना है,' तो समय के साथ-साथ इस विनम्रता का फल प्राप्त होगा और वह व्यक्ति उत्थान प्राप्त कर लेगा। ऐसा यदि हो जाता है, तो व्यक्ति का चित्त मध्य में आ जाता है, न बाएँ को रहता है और न दायें को। अर्थात उसका चित्त न तो उसके पूर्वबन्धनों से नियंत्रित होता है और न ही उसके महत्वाकांक्षी अहम् द्वारा संचालित। ऐसा संतुलित व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार के लिए बहुत उपयुक्त होता है और आत्मसाक्षात्कार द्वारा वह सत्य को पूर्ण रूप में जान सकता है।"


- प. पु. श्री माताजी निर्मला देवी
(स्रोत - 'परा आधुनिक युग' )

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श्री माताजी निर्मला देवी