कुण्डलिनी शक्ति और सहजयोग
सृष्टा से हमारी एकाकारिता कराती है कुण्डलिनी! कुण्डलिनी परमात्मा की ही शक्ति है.. संपूर्ण शक्ति.. जो मनुष्य की रीढ़ की हड्डी के निचे के त्रिकोणी हिस्से (Sacrum bone) में साढे-तिन कुण्डलों में विद्यमान रहती हैं। आत्मसाक्षात्कारी गुरु या महापुरुष के संपर्क में आने पर ये कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है और मनुष्य के शरीर के छः उर्जा केन्द्रों यानि चक्रों के अंदर से निकलकर सर के उपरी भाग में स्थित सातवे चक्र को भेद कर सृष्टा से हमारी एकाकारिता करा देती है। यह एक सहज घटना है, एक जिवंत क्रिया है! मानव के अध्यात्मिक विकास की अन्तिम अवस्था है। महायोग है.. सहजयोग है!
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