'जाती' अर्थात मानव की प्रवृत्ति
हिंदू धर्म में माना जाता था की हर मनुष्य के ह्रदय में परमात्मा का प्रतिबिम्ब आत्मा के रूप में है। यदि ऐसा है तो किस प्रकार हम हिंदू समाज को भिन्न जातियों में बाँट संकते हैं? भारतीय सभ्यता के आरंभिक हजारों वर्षों में लोग मनुष्य के स्वभाव के अनुसार उसकी जाती मानते थे, 'जाती' अर्थात मानव की प्रवृत्ति। परमात्मा को प्राप्त करने की प्रवृत्ति वाले लोग 'ब्राम्हण' कहलाते थे। इन लोगों को पूर्णतः पावन तथा धन एवं सत्ता से विमुख होना पड़ता था। सत्ताकांक्षी लोगों को क्षत्रिय कहते थे। ये लोग अबोध, धार्मिक एवं दिन दुखी लोगों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हुआ करते थे। व्यापार तथा धनार्जन में जिन लोगोंकी रूचि होती थी वे वैश्य कहलाते थे। चौथी प्रकार के लोगों को शुद्र कहा जाता था अर्थात निम्न-चेतना के लोग जो तुच्छ सेवाओं द्वारा एनी लोगों की सेवा करके धनार्जन करते थे। ये जातियाँ जन्म से न होकर व्यक्ति की प्रवृत्ति के अनुसार हुआ करती थी।
- श्री माताजी निर्मला देवी
- श्री माताजी निर्मला देवी
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