ध्यान का समय  


सुबह उठके ध्यान करना बहुत आवश्यक है। जो लोग सवेरे उठ के ध्यान नही करेंगे, वह सहज में कितने भी कार्यान्वित रहें और सब कुछ करते रहे, अपनी गहराई वह पा नहीं सकते। तो फ़िर आपकी गहराई में ही सारा सुख समाधान है, सारी संपत्ति, ऐश्वर्य सभी कुछ उसी गहराई में है। उस गहराई में उतरने के लिये बीच की जो कुछ भी रुकावटें है उनको आपको निकल देना चाहिये। अपने पर प्रेम करके, अपनी और दृष्टी करके, अपने को समझ के की मेरे अंदर यह दोष है, इस दोष को मुझे निकाल देना चाहिये। दूसरो के दोषों की और बहुत जल्दी हमारी नज़र जाती है। यह काम आपका नही। मेरा काम है। यह आप मेरे ऊपर छोड़ दीजिये। आप अपने दोषों की और देखें।

और उसके बाद शाम का ध्यान है। शाम के ध्यान में समर्पण होना चाहिये। तब फ़िर आगे की बात आती है कि आप किस तरह से समर्पित हैं। यानी के इस वक्त यह सोचना चाहिये कि मैंने सहजयोग के लिये क्या किया? आज दिन भर में मैंने सहजयोग के लिये कोनसा कार्य किया? मैंने सहजयोगियों के लिये कौन सा कार्य किया? शरीर से, मन से, बुद्धि से।


तो सवेरे का ध्यान अगर हम कहें की ज्ञान का है तो शाम का ध्यान भक्ति का है



- श्री माताजी निर्मला देवी

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श्री माताजी निर्मला देवी