प्यार

हमारे सहजयोग में प्यार बहुत शुद्ध है। इसमे कोई गन्दगी नही होनी चाहिये। इस प्यार में गन्दगी आ जाए तो सहज का प्यार नही। बिल्कुल देने वाला, इसको निर्व्याज कहा गया है। निर्व्याज मने इसमे ब्याज भी नही माँगा जाता। ऐसा प्यार मैंने किसे दिया? जब आप सोचेंगे की में इतना प्यार करता हूँ/करती हूँ तो बड़ा आनंद आएगा। न की तब जब की मै अब बिल्कुल नफरत करता हूँ... वह ऐसा है.... वह ख़राब है.... तब आनंद नही आयेगा। आनंद तभी आता है जब हम यह सोचते हैं की ये प्यार का आन्दोलन चल रहा है। बड़ी सुंदर भावना मन मै उठती है फ़िर। और यह सुंदर भावना एक तरह की प्रेरणा स्वरुप होती है। उसका वर्णन तो करना मुश्किल ही है, किंतु उसकी झलक चेहरे पे दिखाई देती है। उसकी झलक आपके शरीर में दिखाई देती है। आपकी गृहस्थी में दिखाई देती है। वातावरण मै दिखाई देती है। और सरे ही समाज में दिखाई देती है। इसलिए दोनों समय का ध्यान अवश्य ही सबको करना चाहिये।
- श्री माताजी निर्मला देवी
September 9, 2008 at 1:42 PM
Great!!!
Congartulations!!!