Innocence - अबोधिता
ध्यान में बढ़ने के लिए एक गुण बहुत जरुरी है। बहुत ही जरुरी है। उसको कहते है innocence-भोलापन, स्वच्छ, एक छोटे बच्चों जैसा-innocent child, इसीलिए आपने देखा है की छोटे बच्चे फट से पार हो जाते हैं। चालाक लोग, cunning लोग, अपने को जो बहुत होशियार समझते हैं, वो नही पाते। पूर्णतया innocent होना चाहिये। कोशिश करनी चाहिये।
किसी को दुःख देना भी, किसी को तकलीफ देना भी innocence के विरोध में है। किसी के ह्रदय में चोट लगे, वो आदमी innocent नही हो सकता। Innocence का मतलब ही ये होता है की फूल की जैसे खिली हुई चीज़ हो सिर्फ़ दुनिया को सुगंध ही देती है। किसी को भी तकलीफ या दुःख देना नही चाहिये। हाँ कभी-कभी लोग उनकी मुर्खता की वजह से किसी चीज़ को दुःख मान लेते हैं - वो ठीक है। पर अपनी तरफ़ से आप निश्चित हो करके कभी भी किसी को दुःख या तकलीफ नहीं देना चाहिये।
आपके पास तो innocence का switch है नही; दया का switch है नही; शान्ति का switch है नहीं। यह सब switches आपके अंदर अभी तक लगे नही है। पहले आप सब अपने देवता जगा दीजिये, अंदर में जो बैठे हुए हैं, फ़िर उसके एक-एक सारे सब के switch भी लग जायेंगे।
पर सबसे आसान innocence का switch लगाना है, क्योंकि हम लोग एक बार बहुत innocent थे जब हम लोग पैदा हुए थे। छोटे बच्चों के साथ रहने से innocence आता है। उनके साथ बात करने से बहुत innocence आता है। उनकी बातें याद करने से बहुत innocence आता है। जो लोग innocent हो जाते हैं, वो परमात्मा के राज्य के अधिकारी हो जाते हैं।
ध्यान में सिर्फ़ आप ही अपनी ओर विचार करें की मेरा मन इस वक्त में कोनसी चालाकी में लग रहा है इधर-उधर। महामुर्खता का कार्य कर रहा है। इतना बस देखते ही आप "निर्विचार" - "निर्विचारिता"- यही innocence है।
- श्री माताजी निर्मला देवी
किसी को दुःख देना भी, किसी को तकलीफ देना भी innocence के विरोध में है। किसी के ह्रदय में चोट लगे, वो आदमी innocent नही हो सकता। Innocence का मतलब ही ये होता है की फूल की जैसे खिली हुई चीज़ हो सिर्फ़ दुनिया को सुगंध ही देती है। किसी को भी तकलीफ या दुःख देना नही चाहिये। हाँ कभी-कभी लोग उनकी मुर्खता की वजह से किसी चीज़ को दुःख मान लेते हैं - वो ठीक है। पर अपनी तरफ़ से आप निश्चित हो करके कभी भी किसी को दुःख या तकलीफ नहीं देना चाहिये।
आपके पास तो innocence का switch है नही; दया का switch है नही; शान्ति का switch है नहीं। यह सब switches आपके अंदर अभी तक लगे नही है। पहले आप सब अपने देवता जगा दीजिये, अंदर में जो बैठे हुए हैं, फ़िर उसके एक-एक सारे सब के switch भी लग जायेंगे।
पर सबसे आसान innocence का switch लगाना है, क्योंकि हम लोग एक बार बहुत innocent थे जब हम लोग पैदा हुए थे। छोटे बच्चों के साथ रहने से innocence आता है। उनके साथ बात करने से बहुत innocence आता है। उनकी बातें याद करने से बहुत innocence आता है। जो लोग innocent हो जाते हैं, वो परमात्मा के राज्य के अधिकारी हो जाते हैं।
ध्यान में सिर्फ़ आप ही अपनी ओर विचार करें की मेरा मन इस वक्त में कोनसी चालाकी में लग रहा है इधर-उधर। महामुर्खता का कार्य कर रहा है। इतना बस देखते ही आप "निर्विचार" - "निर्विचारिता"- यही innocence है।
- श्री माताजी निर्मला देवी
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