क्या आप उन्नत्ति कर रहें हैं?  



पूर्ण समर्पित दिमाग के साथ आपको इस किले की तीर्थयात्रा पर जाना है. यह तपों की एक झलक है. आपको यह करना होगा क्यूंकि मैंने बताया है. आपमें से कुछ को मुसीबत या तकलीफ भी हो सकती है. आपको यात्रा के रास्ते में कुछ मुश्किल भी झेलनी होगी, परन्तु ये सब मजाक सम होगी और आपको ऐसे स्थान से जाना होगा जहाँ पर प्रेत आदि नही जा सकते.



१) और यदि आप इन मुसीबतों को मजाक समझते है तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहें हैं.






२) और यदि आप स्वतः ही बुद्धिमान बन जाते है तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहें हैं।



३) और यदि आप शांत स्वभाव (सबूरी) हो जाते है और आपका गुस्सा शांत हो जाता है जब आप पर कोई व्यक्ति आक्रमण करता है, तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहें हैं।




४) यदि आप पर कठिन परीक्षा (मुसीबत) आती है और आप उसकी चिंता नहीं करते, तब तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहें हैं।




५) यदि कोई बनावटी वास्तु आपको आकर्षित (प्रभावित) नही करती और ना ही दूसरों कि भौतिक वस्तुओं को देख कर आप प्रभावित होते है तब तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहें हैं।




६) सहजयोगी बनने के लिए कोई मेहनत या मुश्किल नहीं चाहिए. जब भी आप चाहे आप सहजयोगी नहीं बन सकते, जब आप इसे बिना प्रयास के प्राप्त करते हैं तब आप विशेष हैं. तब आपको इसका आदर करना हैं. यह घटना घटी है और आप इसके प्रति नतमस्तक हैं. जब आपके पास कुछ शक्ति होती है, आप अबोध होते है, आप बुद्धिमान होते है, आप दयालु होते है और मधुर वाणी वाले होते हैं, तब आपको विशवास करना चाहिए कि आप अपनी माँ के ह्रदय में होते हैं। तब आप बिना ध्यान के भी ध्यान में होते हैं. मेरी उपस्थिति कि बिना भी आप मेरी उपस्थिति में होते हैं. तब आप बिना मांगे आपके परमपिता परमेश्वर से आशिर्वादित होते हैं.





- श्री माताजी निर्मला देवी



(सहस्रार दिवस, ५ मई १९८४)

What next?

You can also bookmark this post using your favorite bookmarking service:

Related Posts by Categories



6 प्रतिक्रिया: to “ क्या आप उन्नत्ति कर रहें हैं?

  • सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    September 14, 2008 at 11:44 AM  

    हमने यहाँ ये सीखा:
    १.मुसीबतों को मजाक समझें।
    २.स्वतः ही बुद्धिमान बनें।
    ३.कोई व्यक्ति आक्रमण करे तो शांत स्वभाव(सबूरी) हो जाएं। गुस्सा शांत कर लें।
    ४.कठिन परीक्षा (मुसीबत) आती है और उसकी चिंता नहीं करें।
    ५.बनावटी वस्तु से आकर्षित (प्रभावित) नही होवें और ना ही दूसरों की भौतिक वस्तुओं को देख कर प्रभावित हों।
    ६.बिना प्रयास के सहजयोगी बनने के लिए परमपिता परमेश्वर से आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।

    इन उपदेशों पर चिन्तन के लिए थोड़ा समय चाहिए। इसके लिए आभार।

  • شہروز
    September 14, 2008 at 1:25 PM  

    श्रेष्ठ कार्य किये हैं.
    आप ने ब्लॉग ke maarfat जो बीडा उठाया है,निश्चित ही सराहनीय है.
    कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:

    http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
    http://hamzabaan.blogspot.com/
    http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

  • Anonymous
    September 14, 2008 at 3:16 PM  

    great effort..........wonderful !!
    Please keep it up.

  • राजेंद्र माहेश्वरी
    September 15, 2008 at 5:18 AM  

    यदि हम अपना जीवन श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपने विचारों अथाZत् संकल्पो को श्रेष्ठ बनाना आवश्यक हैं। यही बीज हैं जिससे कर्म रुपी वृक्ष निकलता है।

    Please keep it up.

  • Anonymous
    September 17, 2008 at 7:57 AM  

    is blog k madhyam se apka prayas achchha hai

श्री माताजी निर्मला देवी