सहजयोगी यदि ध्यान धारणा करें और स्वयं को पूर्ण शान्ति में बनाए रखें और पूरी तरह से समर्पित रहें तो उन्हें कुछ नहीं हो सकता.  

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विनाश शुरू हो चुका हैं। भयंकर तूफ़ान, भूचाल और दुर्घटनाएं तथा प्राकृतिक प्रकोप इस कार्य को कर रहे हैं और यह सब कल्कि अवतार के परिणाम स्वरूप हैं। परन्तु यह अवतार एक अन्य कार्य भी कर रहा है, वह है, लोगों को आत्म-साक्षात्कार (पुनर्जन्म) देना। आत्म-साक्षात्कारी लोगों को यह घटनाएँ कभी हानि नही पहुंचाती। इन लोगों को कुछ नही हो सकता। सदैव उनकी रक्षा होगी और उनकी हर चीज़ की रक्षा होगी क्योंकि ये अपनी माँ की सुरक्षा में हैं।


अब समस्या यह है कि इन लोगों से सहजयोगी कैसे व्यवहार करें ताकि ये लोग विकास प्रक्रिया के मार्ग में बाधाएं न उत्पन्न कर सकें? इसका एक मात्र समाधान कुण्डलिनी कि जागृति हैं। अगर किसी बुरे से बुरे व्यक्ति कि भी कुण्डलिनी आप उठा देंगे तो या तो वह नष्ट हो जाएगा या भला व्यक्ति बन जाएगा। कुण्डलिनी जागृति के पश्च्चात सभी दुष्कर्मों की योजना जो उनके मस्तिष्क में है वे त्याग देंगे और वास्तव में बहुत अच्छे लोग बन जायेंगे। हो सकता हैं कि कुछ मामलों में ऐसा ना हो। मैं नहीं कहती कि हर व्यक्ति के साथ सहजयोग सफल हो जायेगा। परन्तु सहजयोगी यदि ध्यान करें, पूर्ण शान्ति कि अवस्था में पूरी तरह से समर्पित होकर बने रहें तो उन्हें कुछ नहीं हो सकता। सदैव उनकी रक्षा की जाती है और आप सब लोगों ने इस सुरक्षा का अनुभव किया हैं। परन्तु सर्वप्रथम आपको स्वयं पर विश्वास करना होगा और सहजयोग के प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा।

हर देश, हम कह सकते हैं, आज इस आसुरी शक्तियों के चंगुल में हैं। हमें कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से इन लोगों को श्रेष्ठ बनाना हैं। यह कार्य आप कर सकते हैं। आप इस कार्य को कर सकते हैं और इसके लिए कोई विशेष परिश्रम आपको नहीं करना पड़ता। अपने रोज मर्रा के जीवन में आप यह कार्य कर सकते हैं. लोगों का अंतर्परिवर्तन करने के लिए केवल इसी चीज़ की आवश्यकता हैं और आप सब इसको कर सकते हैं। आप सबको यह कार्य अत्यन्त निष्ठा से, भलीभांति करना चाहिए। क्रोध में आकर लोगों पे उछालने की या अभद्र व्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं. शांत रहते हुए इस उपलब्धि को प्राप्त करना चाहिए ताकि श्री शिव का क्रोध न भड़क उठे और जैसे कहते हैं, उनकी तीसरी आँख ना खुल जायें. ऐसा होना बहुत भयानक हैं। हम सब इस कार्य को अत्यन्त रचनात्मक तरीके से कर सकते हैं।


अतः सर्वप्रथम हमें अपने शिवतत्व को स्थापित करना चाहिए - आनंद, प्रेम एवं शान्ति के तत्व को।



- परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
(पुणे, ०५/०३/२०००)




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श्री माताजी निर्मला देवी