किस प्रकार हमारा सरस्वती तत्व महासरस्वती तत्व बनता हैं  




"हिंदू, मुस्लमान, इसी, ब्रम्हासमाजी आदि होने की भावनायें आधारहीन हैं। आप मानव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं. मानव रूप में ही आपका जन्म हुआ हैं। आपने अपने नामों के साथ अलग अलग ठप्पे लगा लिए हैं। न आप बंगाली हैं, न आप मराठी हैं, केवल मानव हैं. नाम पर ठप्पे लगाकर आप समस्याओं को बढ़ावा देते हैं। ये ठप्पा आपके लिए इतना महत्वपूर्ण हो जाता हैं की इससे आगे आपको कुछ दिखाई नही देता। ये बंधन जब तक समाप्त नही होता ये अन्धता नही जा सकती क्योंकि आप हर चीज को ऐसे देखते हैं मानो केवल आपका ही रास्ता ठीक हैं। पश्चिम में तो ये समस्या और भी अधिक हैं। उनके मस्तिष्क में यदि कुछ डाला जाए और बताया जाए कि वे अच्छे हैं तो आँखें बंद करके वे उनका अनुसरण करने लगते हैं। वहां के आलोचक भी सभी प्रकार कि कला की अंधाधुन्द आलोचना करते हैं। एक आलोचक दुसरे आलोचक को नकारता है, आपके अंदर से, आपके मस्तिष्क से कुछ भी नहीं निकलता। बहार के लोग जो आपके दिमाग में भर देते हैं वाही आप स्वीकार कर लेते हैं। सभी ने ठप्पे लगाये हुए हैं। इसके द्वारा अहं बढ़ता है और व्यक्ति सोचता है कि उसका व्यक्तित्व अत्यन्त महान है और यह अद्वितीय है। सामूहिकता से हटकर व्यक्ति मात्र बन जाता है। सच्चाई ये है कि हम सब एक हैं, एक विराट, एक पूर्णत्व। जब आप इसके विपरीत चलते हैं तो व्यक्तिवादी बन जाते हैं तथा सामूहिकता से और अधिक दूर हो जाते हैं। यह ठीक है कि एक पत्ता दुसरे पत्ते से भिन्न होता है परन्तु सभी पत्ते एक ही पेड़ पर होते हैं, वे सभी विराट के अंग-प्रत्यंग होते हैं। जब हम स्वयं को सामूहिकता से अलग कर लेते हैं तो सरस्वती तत्व महासरस्वती तत्व नहीं बनता।

महासरस्वती तत्व में जब आप रहते हैं तो देखने लगते हैं कि आप विराट हैं और हम सब एक हैं। कलाकार जब कोई सृजन करता है तो व्यक्ति उसे ह्रदय से स्वीकार करता है। सरस्वती का कोई भी कार्य जब हम करते हैं तो यह परमात्मा को समर्पित होना चाहिए। जब ऐसी भावना होगी तो वह कलाकृति अमर हो जायेगी। परमात्मा को समर्पित कि गई सभी कवितायें, संगीत, भजन एवं कलाकृतियाँ आज भी जीवित हैं। आधुनिक फ़िल्म संगीत आता है और चला जाता है परन्तु कबीर और ज्ञानेश्वर कि कृतियाँ आज भी याद कि जाती हैं। अपने आत्म-साक्षात्कार के कारण उन्हें महासरस्वती शक्ति प्राप्त हो गई थी। उसके प्रकाश में उन्होंने जो भी सृजन किया वह अद्वितीय बन गया। ये ऐसी रचनाएँ थी जिन्होंने विश्व को एक सूत्र में बांधा। व्यक्ति को केवल सरस्वती तत्व पर ही नही चलते रहना चाहिए क्योंकि यह व्यक्ति को सीमित करता है। सरस्वती तत्व से उसे महासरस्वती तत्व तक पहुंचना चाहिए। सरस्वती तत्व यदि बीज हैं तोह महासरस्वती तत्व पेड़ हैं। इस बीज को जब तक आप महासरस्वती नहीं बनाते तब तक आप महालक्ष्मी से एकरूप नहीं हो सकते। महालक्ष्मी के वरदान से आप आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं। ये तीनों, अर्थात महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली आज्ञा चक्र पे मिलती हैं।


- परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
(कलकत्ता, ०३/०२/१९९२)


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