साकार को निराकार में परिवर्तित करने के उपायों में पूजा एक है  





"....क्योंकि किसी विग्रह, पृथ्वी माँ की चैतन्य लहरियों से बने स्वयंभु की पूजा करने से लोगों को बड़ी-बड़ी समस्याएं झेलनी पड़ी। सर्वप्रथम उन्हें ध्यान धारणा करनी पड़ी जो सविकल्प समाधि कहलाती थी। इसका अर्थ हैं की उस अवस्था में आपको ऐसी स्वयंभु मूर्ति 'विग्रह' पर ध्यान केंद्रित करना पड़ता था। विग्रह का अर्थ है वह मूर्ति जिससे चैतन्य बहता हो।


ऐसा करते हुए साधक को कुण्डलिनी उठाने का प्रयत्न करना पड़ता था। और कुण्डलिनी आज्ञा चक्र तक आ जाया करती थी, परन्तु इससे आगे सहस्रार तक पहुँच पाना असंभव कार्य था क्योंकि इसके लिए व्यक्ति को साकार से निराकार में जाना पड़ता है। और निराकार पर ध्यान केंद्रित करना भी एक अन्य असंभव कार्य था - जैसे मुसलामानों तथा बहुत से अन्य लोगों ने करने का प्रयत्न किया। ऐसी परिस्थितियों में ये आवश्यक था कि निराकार साकार रूप धारण करे ताकि जटिलताएं समाप्त हो जाएँ। ज्यों ही आप साकार पर ध्यान केंद्रित करें आप ही निराकार हो जायें। मान लो आपके सन्मुख बर्फ है, इसे छुते ही यह पिघलने लगती है और आप इसकी शीतलता महसूस करने लगते हैं।


तो अब समस्या आसानी से हल हो गई। पूजा उन विधियों में से एक है जिनसे आप साकार को निराकार बना सकते हैं। आपके चक्र ऊर्जा के चक्र हैं, परन्तु उन सभी चक्रों पर भी पथ प्रदर्शक देवता विराजमान हैं. उन्हें भी साकार से निराकार बनाया गया है। जब आप पूजा करते हैं तो आकार पिघलकर निराकार ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है तथा ये निराकार उर्जाएं प्रवाहित होने लगती हैं और वायु बहने लगती हैं। और इस प्रकार आत्मा से असत्य तादात्म्य (Misidentification) और आत्मा पर ये व्यर्थ का बोझ लादने (Super impositions) के भ्रम दूर हो जाते हैं।"



- परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
(पेरिस, १८ जून १९८३)

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श्री माताजी निर्मला देवी