आप स्थूल पदार्थ से सूक्ष्म पदार्थ कि ओर बढ़ते हैं
अपनी भौतिक कुण्ठाओं पर नियंत्रण प्राप्त करना, पूजा का सार हैं। पूजा महत्वपूर्ण है परन्तु अपनी भौतिक कुण्ठाओं पर नियंत्रण किस प्रकार प्राप्त किया जाए? अपने लिए जब हमें कोई भौतिक पदार्थ कि इच्छा होती है तो हमें ये जान लेना चाहिए कि ये पदार्थ परमात्मा ने हमें प्रदान किया है। हर चीज़ परमात्मा कि हैं।
हम यदि परमात्मा को पुष्प अर्पण करते हैं तो पुष्प तो परमात्मा का ही सृजन है, हम क्या अर्पण कर रहे हैं? परमात्मा को हम दीप दिखाते हैं, या परमात्मा कि आरती करते हैं तो क्यों? ये प्रकाश भी तो परमात्मा का ही हैं! हम क्या करते हैं? परन्तु परमात्मा को प्रकाश दिखने से हम अपने अंदर कि प्रकाश की पूजा करते हैं। हमारे अंदर प्रकाश-तत्व ज्योतिर्मय हो उठता हैं। प्रकाश तत्व यहाँ-आज्ञा-तक हैं। जब आप आरती करते हैं या परमात्मा के सन्मुख दीपक जलाते हैं, जब आप परमात्मा को प्रकाश दिखाते हैं तो आपके अंदर प्रकाश-तत्व ज्योतिर्मय हो उठता हैं।
अब आप पुष्प अर्पण करते हैं तो मूलाधार ज्योतिर्मय हो जाता है। अब आप मधु अर्पण करते हैं तब आपका चित्त प्रबुद्ध होता है। तो क्यों हम ये सब परमात्मा को अर्पण करते हैं? आखिरकार परमात्मा को तो कुछ भी नही चाहिए। परन्तु परमात्मा भोक्ता (Enjoyer) हैं। आप भोक्ता नहीं हैं। आप भोग नहीं सकते। आपके अंदर परमात्मा भोक्ता हैं। जब परमात्मा वहां पर होते हैं तो वे आनंद उठाते हैं, अर्थात आत्मा। अतः आपकी आत्मा को जो चीज़ अच्छी लगती है उसका उपयोग पूजा-अर्चना करने के लिए करते हैं।
स्थूल से आत्मा की ओर जाना, ये वो चीज़ हैं जिससे आप चलते हैं क्योंकि पहले आप अपने chakron को ज्योतिर्मय करते हैं, चक्र ज्योतिर्मय होने पर आपके देवी-देवता प्रसन्न होते हैं, और जब देवी-देवता प्रसन्न होते हैं तो कुण्डलिनी को ऊपर उठने का रास्ता प्राप्त होता है। मार्ग बन्ने पर कुण्डलिनी ऊपर उठती है और आपके चित्त का समन्वय आत्मा से होने लगता है। एक-एक कदम आप स्थूल पदार्थ से सूक्ष्म पदार्थ कि ओर बढ़ते हैं, सूक्ष्म पदार्थ से अपने चक्रों की ओर, चक्रों से अपने देवी-देवताओं कि ओर तथा देवी-देवताओं से आत्मा कि ओर।
- परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
(लन्दन, २७/०९/१९८०)
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