परमात्मा का योग बहोत आवश्यक हैं  

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भूत या भविष्य के बारे में जानने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। क्या आवश्यकता हैं? इससे क्या लाभ होता हैं? अपनी पूर्व गरिमा या पूर्व जीवन में, जो आज मूल्यहीन है, आपको किस प्रकार रूचि हो सकती है? परन्तु ये मानव की दुर्बलता है कि वह अपने व्यक्तित्व में कुछ ऐसा जोड़ना चाहता है जो अत्यन्त बनावटी, अस्तित्वहीन और मूल्यहीन है। फ़िर वह कहता हैं कि मैंने ऐसा किया, मैंने ऐसा किया, मैं ऐसा कर पाया, मुझे कभी नहीं प्राप्त हुआ।


भारत में इस आज्ञा के कारण प्रायः लोग बाईं ओर को चले जाते हैं क्योंकि वह कहते हैं परमात्मा की पूजा करो। अब यदि इन्हे परमात्मा की पूजा करनी है तो उनका योग तो परमात्मा से हैं नहीं। देखें, कि माइक्रोफ़ोन से जब मेरा योग नहीं था तो मैं आप लोगों से बात नहीं कर पाई। अतः परमात्मा से योग प्राप्त किए बिना लोग परमात्मा की पूजा करने लगते हैं! वे सभी प्रकारकी आरतियाँ करते हैं, उपवास करते हैं, आदि-आदि, और स्वयं को सताते हैं!


- परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी
(दिल्ली, भारत, ०३/०२/१९८३)


(बाईं और -> इडा नाड़ी)

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श्री माताजी निर्मला देवी