शास्त्री जी को आदर्श माने आज के नेता!  





आज मौजूदा स्थिति में ऐसा नेता जो भ्रष्ट न हो ढूँढना असंभव है! सच में विशवास नहीं होता की क्या यह वही देश है जिसे स्वतंत्रता दिलाने के लिए कईं वीरों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया! क्या ऐसा कोई भी राजनैतिक संगठन नहीं जो हमें एक ऐसा नेता दे सके जो खालिस निर्मल हो, इमानदार हो!
अगर इतिहास में जाएँ तो ऐसे कितने ही नेता हुए हैं जो निष्कलंक राजनैतिक जीवन के उधारण दे गए हैं! ऐसे ही एक नेता थे स्वर्गीय लाल बहाद्धुर शास्त्री! छोटे कद परन्तु अति मानविय उच्च व्यक्तित्व के स्वामी लाल बहाद्धुर का वास्तविक नाम लाल बहाद्धुर वर्मा था! अपने उपनाम को त्यागने का कारण उनका जातिवाद में अविश्वास का होना था! उस समय उनकी आयु मात्र बारह वर्ष थी! काशी विद्या पीठ से शास्त्री की पद्ध्वी प्राप्त करने के बाद उनके नाम से शास्त्री जुड़ गया! अपने मधुर स्वभाव और सत्यनिष्ठा के कारण वोह गाँधी जी को अति प्रिय थे!
हाल ही में सर सी o पी o श्रीवास्तव, जो की कई वर्षो तक शास्त्री जी के मुख्य निजी सचीव रहे, द्बारा लिखित पुस्तक पढने को मिली, जो उन्होंने शास्त्री जी के जीवन पर लिखी है! लेखक द्बारा वर्णित शास्त्री जी का व्यक्तित्व एक स्वप्न सा लगता है! क्या ऐसा कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार कार्यकुशलता और अधभुत व्यक्तित्व का स्वामी कोई हो सकता है! जब शास्त्री जी ने प्रधान मंत्री का कार्य भार संभाला तब उन्होंने अपने सचीव (सर सी o पी o श्रीवास्तव जी) को सम्भोदित करते हुए कहा, "प्रधान मंत्री का काम मुश्किल जरुर है लेकिन असंभव नहीं, कौशिश करते हैं - अगर हम कामयाब रहे तो अच्छा ही होगा, और मैं नाकामयाब रहा तो इस्तीफा दे कर चला जाऊंगा!" जरा शब्दों पर ध्यान दे - "अगर हम कामयाब रहे", "अगर मैं नाकामयाब रहा" - अपनी कामयाबी वो हमेशा दूसरो से बाटते थे, लेकिन नाकामयाबी की जिम्मेदारी सिर्फ अपने ऊपर लेना चाहते थे! ऐसे अनेक वाक्य हैं जो उनकी उच्च दर्जे की व्यक्तिगत इमानदारी पर संकेत करते हैं!
आज दहेजप्रथा जैसी कई बुराइयां समाज में अपनी जड़ जमा चुकी हैं, ऐसे में शास्त्री जी को आदर्श मानना अति आवश्यक है जिन्होंने दहेज़ के नाम पर सिर्फ एक चरखा ही लिया वो भी वधुपक्ष के जोर देने पर! निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें धन का हमेशा अभाव रहा! उच्चे आदर्शो वाले शास्त्री जी बचपन में ही कड़े नैतिक आचरण को अपना चुके थे, जिनपर वोह जीवन भर बने रहे! अपने आप पर पूर्ण नियंत्रण और दृढ़ आत्मविश्वास उन्हें और तेजस्वी व्यक्तित्व वाला बनाता था! मात्र सोलह  वर्ष की अल्प आयु में ही अपना सर्वस्व त्याग कर वो गांधी जी के साथ असहयोग आन्दोलन में निकल पड़े! उस घडी उनकी सर्वोच्च निष्ठा सिर्फ भारत माँ के लिए थी!
१९६५ के भारत पाक युद्घ में बड़ी ही खूबी से उन्होंने देश का नेतृत्व किया, और देश की छवि अन्तराष्ट्रीय क्षेत्र में और भी निखर कर आई! 'जय जवान जय किसान' का नारा तो उनकी कल्पनाशीलता तथा संवेदनशीलता का उदाहरण है! ताशकंद सम्मलेन  के दोरान उन्होंने जो असाधारण राजनैयिक कुशलता का परिचय दिया; वोह देखते ही बनता था!
आज देश को आवश्यकता है ऐसे ही नेता की जो शास्त्री जी के व्यक्तित्व को अपना चुके हों! और नेता ही क्यों हर नागरिक का कर्त्तव्य बनता है की शास्त्री जी जैसे आदर्श व्यक्तियों के द्बारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करें! देश को बदलने से पहले हमें स्वयं को बदलना होगा! गाँधी जी ने सत्य ही कहा है, " जो परिवर्तन आप समाज में चाहते हो वो परिवर्तन बनो!" पर शायद कहना आसान करना मुश्किल होगा, परन्तु अगर अब नहीं करेंगे तो हमारी आने वाली पीढी को आतकवाद और भ्रष्टाचार के अतिरिक्त हम कुछ नहीं दे पाएंगे! देखना यह है की जिस तरह से हमसे पहले की पीढी हमारे सम्मुख स्वर्णिम उदाहरण दे गयी है हम अपनी आने वाली पीढी को क्या देकर जायेंगे! अब समय आ गया है जब हर माँ का लाल 'लाल बहाद्धुर' हो! तभी हम ऐसे राष्ट्र की कल्पना कर पाएंगे जैसी शायद गाँधी जी सरीखे महा पुरुषों ने की थी!

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